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Monday, October 24, 2022
पंचायती राज में ग्राम पंचायत तालुका पंचायत जिला पंचायत लेखा जोखा संवत 1978 एक इतिहास
पंचायती राज का इतिहास सबसे बड़ा है। सबसे अधिक आबादी आज गांवों में बसती है। गांवों में रहने वाले सभी नागरिकों की शिक्षा सुरक्षा स्वास्थ्य रोजगारी की जरूरत पंचायत द्वारा पूरा किया जाता है। देश में किसानों की भूमिका सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ है। मानव जीवन में भोजन की सर्वश्रेष्ठ भूमिका है। भोजन के विना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। और यह भोजन के निर्माण में सबसे अधिक भूमिका अन्नदाता किसान आज भी गांवों में रहते हैं। बेरोजगारों की अधिकतम संख्या भी आज गांवों में निवास करती हैं। और किसानों की हालत आज दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। परिणाम स्वरूप आज अधिकतर किसान खेती छोड़ने पर विबस नजर आ रहे हैं। खेती आज घाटे का व्यापार बनते जा रही है। सरकार रात दिन किसानों के लिए नई नई योजनाएं बना रही है। परंतु जमीनी हकीकत में ए सारी योजनाएं कहां गायब हो जाती है समझना मुश्किल है। इसकी बिबेचना जमीनी स्तर पर होना चाहिए। अन्यथा हालत गंभीर होने पर इसके कई दुष्परिणाम होने के आसार हैं। गुजरात राज्य सरकार की योजनाओ में कोई कमी न होने के बावजूद हालत दयनीय स्थिति में जाना अपने आप एक सवालिया निशान लगा रहा है। सूचना अधिकार अधिनियम से मिली जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक सरकार करोड़ों अरबों रुपए हर महीने खर्च करती है। परंतु हकीकत में इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भ्रष्टाचार के हवाले चला जाता है। और जांच के नाम पर सिर्फ और सिर्फ पत्राचार और अरजदारो को मिल रही है सिर्फ तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख। उदाहरण स्वरुप ग्राम पंचायत में एक लेखपाल तलाटी और ग्राम प्रधान सरपंच जिसके पास न ही कोई विशेष योग्यता होती है और न ही कोई अनुभव। और उसके ऊपर तालुका विकास अधिकारी से लेकर जिला विकास अधिकारी की भूमिका में लगभग सभी शिक्षित के साथ अनुभवी अधिकारी होते हैं। परंतु अक्सर ए फाइलों और बिन जरुरी अवैध एरकंडीशन से बाहर नहीं देखे जाते। जैसे आज गांवों कस्बों में बहुत तीव्र गति से रुपान्तरित हो रहे हैं। और इन सभी की जवाबदेही पंचायत की होती है। लेखपाल तलाटी के पास इंजीनियर की योग्यता होती नहीं सरपंच ग्राम प्रधान को जरूरत नहीं होती। अब ऐसे सभी कस्बे आज राम भरोसे विकास कर रहे हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार अधिकतर तालुका विकास अधिकारी बीडीओ परमोटेड होते हैं। जिससे कायदे कानून की बजाय उन्हें भी उनके उच्च स्तरीय अधिकारियों एवम नेताओं की परिक्रमा लगाना पाया गया। गांवो से लकर जिले तक यहां भी बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जाता है। परंतु जाच करना कायदे कानून के मुताबिक काम होना ऐसे सभी कानून लगभग आखिरी श्वास लेने पर मजबूर पाये गये। आरटीआई का कानून हो या सेवा का अधिकार, लघुत्तम मासिक वेतन धारा 1948 हो अथवा कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिनियम आदि जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार कानून सिर्फ एक जुमला नजर आ रही है। जिले से लेकर राज्य कचेहरी तक कायदा कानून आज भी यहां कैद नजर आ रहा है। और सबसे अधिक भूमिका निभाने वाले यहां सर्वोच्च अधिकारी भी अक्सर टाइम पास करते नजर आते हैं। वैसे भी जिला विकास अधिकारी का पद सिर्फ कलेक्टर तक पहुंच जाने के लिए एक सीढ़ी की अंतिम छोर माना जाता है। और अंत भला तो सब भला मानकर यहां अधिकारी भी कायदे कानून की दिन दहाड़े बेइज्जती करने में अपनी भलाई और पहचान समझते हैं। जिले में प्राथमिक शिक्षा भी इसी पंचायती राज में शामिल है। आबादी जनसंख्या आज प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। और शिक्षा विभाग में प्राथमिक शिक्षा की हालत आज दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। अधिकतर इमारतें जर्जरित हो चुकी है। और शिक्षा मानव जीवन में सर्वश्रेष्ठ सर्वोच्च स्थान रखता है। और गुजरात में अधिकतर शिक्षकों के पास सिर्फ चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया है। जबकि कानूनन शिक्षा के सिवाय अन्य किसी भी कामों को न करने के अनेकों प्रावधान है। परंतु सत्ता के सामने यहां भी कानून बेसहारा अनाथ मजबूर दिखाई दे रहा है। इसी विभाग के हवाले स्वास्थ्य विभाग भी कार्यरत है। और सरकार सभी जिलों में गांव से लेकर जिले तक स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपए खर्च करती है। परंतु जब शासन में शिक्षा का कोई स्थान नहीं है फिर प्रशासन इसका भरपूर फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ सकता। गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत गंभीर बनी हुई है। जिसे न कोई देखने वाला है न ही इनकी कोई फरियाद सुनने वाला है। सामान्य बीमारियों के लिए जिले में दर्दियो की लंबी लंबी लाइन खुद ब खुद इसकी जिंदा मिसाल है। छोटे छोटे शिशुओं की जवाबदेही भी इसी पंचायती राज के हवाले सरकार दे चुकी है जहां कायदे कानून की कोई जगह नहीं है। लाखों रुपए वेतनधारी भी सीधा इस प्रकार से जवाब देते हैं जैसे उन्हें कायदे कानून का न ही कोई डर है न ही चिंता। नवसारी सूरत वलसाड तापी जिले में मिली जानकारी के अनुसार हालत गंभीर और दयनीय बनी हुई है। सरकार इन सभी विभागों में जांच हेतु जिले स्तर एक सतर्कता आयोग बनाना चाहिए। सतर्कता आयोग की जिला कमेटी आज तक सिर्फ फाइलों से बाहर नहीं देखी गई। सरकार तत्काल विचार करे । अन्यथा सुधार विकास समृद्धि पारदर्शिता सिर्फ एक जुमला ही बनी रहेगी। फिल हाल समय परिवर्तन संसार का नियम है। और आज भी यहां अधिकतर काम राम भरोसे ही चल रहा है।
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